ग़ज़ल- पिया मिलन की घड़ी है विदाई का आलम…
पिया मिलन की घड़ी है विदाई का आलम।
ज़रा ज़रा सी ख़ुशी है ज़रा ज़रा सा ग़म।।
मिली ख़ुशी या मिला ग़म, अज़ीब है दरहम।
विदा का ज़ख्म तो साजन का साथ है मरहम।।
पिता से आज बिछड़कर ये आँख भर आईं।
छुआ पिया ने मुझे अश्क़ हो गये शबनम।।
मधुर मिलन है दिलों का, ख़ुशी है हर मन में।
जमीं पे आज सितारों का हो रहा संगम।।
सुहाग सेज सजी है अज़ीब उलझन है।
सुहाना दर्द हसीं रात ‘कल्प’ है हमदम।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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