ग़ज़ल/दिल नहीं करता
तुझे खोकर कुछ पाने को दिल नहीं करता
अब बेवजहा मुस्करानें को दिल नहीं करता
जाने कौन से सफ़र पे ये ले चला मेरा साया
जाने क्यूं लौट कर आने को दिल नहीं करता
ये बेक़रारी,ये उलझनें,ये खामोशियों के सबब
मुझें ले डूबे इतना ,बताने को दिल नहीं करता
क्या बताऊँ मैं कि तूने कितना सताया है मुझें
अब चाहकर भी तुझे सताने को दिल नहीं करता
तेरे बग़ैर ये सारे के सारे मौसम बेज़ार लगते हैं
ऐसा बिखरा हूँ मैं,सिमट जाने को दिल नहीं करता
~अजय “अग्यार