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30 May 2020 · 1 min read

ग़ज़ल :-दर्द-ए-दिल आपका समझता हूँ…

दर्द-ए-दिल आपका समझता हूँ।
हाल संताप का समझता हूँ।।

जल रहा जिस विरह की वेदी पर।
फल तेरे श्राप का समझता हूँ।।

ज़िंदगी हो गई जहन्नुम सी।
कर्ज उस पाप का समझता हूँ।।

क़त्ल होगा ज़मीर आशिक़ का।
फैसला ख़ाप का समझता हूँ।।

मुझको जिस नाम से चिढ़ाते हैं।
अर्थ उस छाप का समझता हूँ।।

दिल को मिलता सुकून है इससे।
फ़ायदा जाप का समझता हूँ।।

बागवां खूँ से सींचता गुलशन।
फ़र्ज़ इक़ बाप का समझता हूँ।।

दूरियां ‘कल्प’ दर्द देती हैं।
मुत्तसिल आपका समझता हूँ।।

✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’

2122 1212 22

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