ग़ज़ल- तेरे हर इक ख्वाब को ताबीर कर दूँ..
तेरे हर इक ख्वाब को ताबीर कर दूँ।
नाम तेरे दिल की ये जागीर कर दूं।।
गर मुहब्बत तू करे मुमताज़ बनकर।
आशिक़ी में ताज़ भी तामीर कर दूँ।।
इश्क़ के तेरे फसाने हर ज़ुबां पर।
जोड़ कर कड़ियों को अब जंजीर कर दूँ।।
सांस बन कर दिल पे मेरे अब तो छा जा।
इक़ मुकम्मल जिंदगी तहरीर कर दूँ।।
पहले राँझा तो बना अपना मुझे फिर।
देखना तेरे लिए मैं हीर कर दूं।।
‘कल्प’ लिखता है मुहब्बत के तराने।
तू कहे अपना क़लम शमशीर कर दूँ।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’