ग़ज़ल/तेरी हर अदा पे ग़ज़ल कह सकता हूँ
तेरी पलकों के साये को भी बादल कह सकता हूँ
मैं शायर हूँ, तेरी हर अदा पे ग़ज़ल कह सकता हूँ
तेरे लब पंखुड़ी हैं ग़ुलाब की , आँखें हिरनी जैसी
ज़ुबा माशाल्लाह तेरे हलक को संदल कह सकता हूँ
तू है मौसमें बहारा सी ,तू मेरी इकलौती हक़दार है
मैं तेरी साँसों औऱ आहटों को पायल कह सकता हूँ
ये ज़िगर ये रूह हर वक़्त तेरी ही तो बातें करते हैं
मैं तेरे इश्क़ में ख़ुद को पागल वागल कह सकता हूँ
तू कहीं भी रहे ये तेरा अक्स मेरे सीने में दफ़्न रहेगा
मैं तेरी यादों में ,सुबहा को तेरी शकल कह सकता हूँ
दुपहर को तेरी हँसी, शाम को तेरी जुल्फों का साया
औऱ रात को तेरी आँखों का काज़ल कह सकता हूँ
~~अजय “अग्यार