ग़ज़ल/ तुझे राधा कहूँगा
तुझें हीर कहूँगा मेरी जाँ, कहकशां कहूँगा
मैं भी नशा किया करूँगा, तुझे नशा कहूँगा
कभी महबूबा कहूँगा कभी दिलरुबा कहूँगा
मैं तेरे दिल में रहूँगा,हर दफ़ा मरहबा कहूँगा
ना जाना छोड़कर तू मेरा बाग़ीचा कोयलिया
तेरी तारीफ़ में हर अदा पे कुछ ज़ियादा कहूँगा
तू ही इबादत है मेरी,अब तू ही आदत है मेरी
मैं बंजारा ख़ुद को मोहन कहूँगा तुझें राधा कहूँगा
तेरे हर दर्द में हिस्सेदारी करूँगा, सच कहता हूँ
मैं तेरी मुश्किल-ओ-दर्द-ओ-ग़म को आधा कहूँगा
पढूँगा रोज़ रोज़ तेरी मुस्कराहटें, ये तेरी शरारतें
मैं तेरी ख़ैर-ओ-बरकत,हर ख़ुशी को क़ायदा कहूँगा