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22 Dec 2019 · 1 min read

ग़ज़ल- जोड़कर इन सरफिरों को क्या करोगे

जोड़कर इन सरफिरों को क्या करोगे।
तोड़ कर इतने दिलों को क्या करोगे।।

एक घर अपना सम्हलता है नही तो।
जीत कर सारे किलों को क्या करोगे।।

बाँट कर हिंदू मुसलमा को वतन में।
इन विदेशी वोटरों को क्या करोगे।।

भूलिये मत हो टिके आधार पर तुम।
काट कर अपनी जड़ों को क्या करोगे।।

पड़ न जाओ तुम बुलंदी पर अकेले।
ऐंसे ऊँचे से क़दों को क्या करोगे।।

हों नही ताली बजाने ये जमाना।
जीत कर उन मंजिलों को क्या करोगे।

जो भरोगे होसलों के बल उड़ाने।
काट दो अब इन परों को क्या करोगे।।

फक्र से देती सुकू ये सरजमी ही।
लाँघकर इन सरहदों को क्या करोगे।।

वेबह्र होकर ग़ज़ल रुसवा हुई है।
कंसुरे हों तो सुरों को क्या करोगे।।

है नशा भरपूर मेरी शायरी में।
छोड़िए इन मयकदो को क्या करोगे।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
2122 2122 2122

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