ग़ज़ल- अच्छे घरों की गांव मे बस बात होती है।
अच्छे घरों की गांव मे बस बात होती है।
सपनो में उन दिनों से मुलाकात होती है।।
तुम चाहते हो आम को इमली भी हम कहें।
दिन में अँधेरा करने से क्या रात होती है।।
इम़दाद हमने की तो हुआ है बड़ा गुनाह।
जब आप बाँटते हैं तो खैरात होती है।।
व़ादा ख़िलापि तुम करो तो हक़ है आपका।
व़ादा निभायें हम तो बुरी बात होती है।।
सूखा सहे बहुत अजी गैरों के राज में।
आँगन में अब तो अपने भी बरसात होती है।।
सूखे शज़र की शाख पे आए न पंछी अब।
कोपल पे ही परिंदों की बारात होती है।।
अपनों से हाल कहके वो बरबाद हो गए।
इक़ शब्द बोलने से ‘कल्प’ मात होती है।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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