ग़ज़ल:- जिंदगी का निशान बाक़ी हैं….
जिंदगी का निशान बाकी हैं।
मुझ में अब भी तो जान बाकी है।।
हौसलों की उड़ान बाकी है।
नापने आसमान बाकी है।।
हार तो हम गये बहुत पहले।
झूठ तेरा रुझान बाकी है।।
जिंदा हैं हम ज़मीर गिरवी रख।
फिर भी हममें गुमान बाकी है।।
उड़ रहे हम जमीं नही नीचे।
बस ख़याली मचान बाकी है।।
आग शक से लगी हुई होगी।
जल गया घर मकान बाकी है।।
बीते कल पे ही दम्भ भरता हूँ।
खो गया कल बखान बाकी है।।
हीरे मोती नही ख़ज़ाने में।
रेत की ही खदान बाकी है।।
ये वबा बेबसी बनी अब तो।
घर ही बस इक़ निदान बाकी है।।
रस्सियाँ जल के भी अकड़ती हैं।
देखो इनमें गुमान बाकी है।।
बुझ गई ज्योति ‘कल्प’ जीवन की।
सिर्फ़ अब राख-दान बाकी है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’