ग़ज़ल:- जिंदगी और सारासच
विषय:- जिंदगी और सारा सच
विधा:- ग़ज़ल
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जिंदगी का सारा सच जान गई हो तुम,
जान के बेबसी अब तो मान गई हो तुम।
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मुफ़लिसी मे कैसे उल्फ़त निभाऊं तुमसे,
बेवफ़ा नही मैं शायद पहचान गई हो तुम।
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फ़कत ख्व़ाब देखे है बेशुमार तुम्हारे मैंने,
दिल से ऐसे जैसे निकल जान गई हो तुम।
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क्यूं लगता अब मुझको जाने के बाद तेरे,
कुछ पल की बन जैसे मेहमान गई हो तुम।
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तोड़ कर दिल इस तरहा चली जिंदगी से,
गलत है सोचना कि बन महान गई हो तुम।
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तुमने जितना भी जाना,सारा सच नही है,
बिन “जैदि” के हो कर बे’जान गई हो तुम।
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शायर:- “जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)
9829829629
L.C.Jaidiya “Jaidi”
Bikaner (Rajasthan)