ग़ज़ल- जल रही है नारियां पद्मावती के भेष में..
जल रही है नारियां पद्मावती के भेष में।
टूटती मर्यादा नित क्यों राम तेरे देश में।।
लुट रही अस्मत सभा में, बेटियों की अब यहाँ।
मूक बन बैठे सभासद, आपसी ही क्लेश में।।
घात करते भेड़िये अब, बन गये वहसी सभी।।
बेटियों की हो सुरक्षा, आज के परिवेश में।।
फ़र्क अब मत कीजियेगा, आँकना कमतर नहीं।
बेटियां अब्बल रही हैं, जिंदगी की रेस में।
एनकाउंटर ही सही अब , ‘कल्प’ ये निर्णय सही।
आज तक फाँसी नही है, निर्भया के केस में।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’