ग़ज़ल ( छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए )
221, 2121, 1221, 212
ग़ज़ल
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उनकी नज़र ने मेरे सभी ग़म भुला दिए
पत्थर था दिल उसी में वो गुंचे खिला दिए//१
जैसे छुआ हो अब्र ने तपती ज़मीन को
छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए//२
ख़ुशबू उठी है क़ल्ब में सोंधी सी इश्क़ की
यादों ने उनके प्यार के छींटे गिरा दिए//३
हल्की सी बस ख़बर थी कि निकलेगा चाँद कल
स्वागत में उसके मैंने सितारे सजा दिए//४
आंखों में उनकी देखी जो इक इश्क़ की भँवर
नैया को अपनी हम तो उसी में डुबा दिए//५
एहसास तब हुआ कि मज़ा इश्क़ में ही है
जब हम खुशी से खुद की ही हस्ती मिटा दिए//६
— क़मर जौनपुरी