ग़ज़ल:-चला जाऐगा ये दौर-ए-आलम
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र!!!!
ग़ज़ल
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लब्ज़ प्यार के,ज़ुबाँ से कह जाऐंगे,
रुख़सत होंगे तो अश्क बह जाऐंगे।
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नफ़रत के पहाड़ दिलो मे है हमारे,
कल तक पहाड़ देखना ढ़ह जाऐंगे।
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चला जाऐगा ये दौर-ए-आलम भी,
कुछ पल इसे अगर हम सह जाऐंगें।
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सब्र और सलीके सिखाते क्या-क्या,
जब हक़ीक़त, दहर को कह जाऐंगे।
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लम्हे जब,दास्ताँ सुनाऐगें हमारे भी,
कल ज़माने को याद हम रह जाऐंगे।
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सकुन-ऐ-जिंदगी है इसी में है “जैदि”
नम होगी आंखे जब छोड़ देह जाऐंगे
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मायने:-
दहर:-दुनिया
सुकन-ऐ-जिंदगी:-जीवन की शांति
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)