ग़ज़ल/गीतिका
तख़्त-ओ-ताज अमीरों को मिला करता है,
ग़रीब फ़टी चादर हर वक्त सिला करता है,
हम हैं परिन्दें इस कौम के असली वारिस,
तस्वीर बनाने में तो हर हाथ घिसा करता है।
बड़ी अदब से रौशनी तो कत्लेआम हुई,
हमारे जिस्म की हर घाव सरेआम हुई,
मिट्टी चमकी है जब लहू लहूलुहान हुआ,
नाज़ वो मिट्टी किसी और को नीलाम हुई।
ज़ख्म के डर से जज़्बात कहीं मरते है,
बाज़िया जो जीते हैं बदलाव वही करते हैं,
ढल गए रक्त तो इतिहास बना करते हैं,
ऐसी कुर्बानी पर सवाल नहीं करते हैं।