ग़ज़ल .”खूबसूरत …लगा नहीं कोई”
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चल सका सिलसिला नहीं कोई
मुसकाता…. मिला नहीं कोई
पहल करनी पडी.. मुझे पहले
हाथ आगे ….बढ़ा नहीं कोई
ताज के श्वेत संगमरमर सा
खूबसूरत …लगा नहीं कोई
आ गया तिरे मेरे बीच में
तीसरा था सगा नहीं कोई
आशियाँ जल उठा हमारा जब
बस्तियों में… जगा नहीं कोई
रूठ जाती सनम दिखे बंटी
गो बढ़कर ..सजा नहीं कोई
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रजिंदर सिंह छाबड़ा