ग़ज़ल:- क्या करुं
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र ।
ग़ज़ल
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गुजरी हुई उन रातो का क्या करुं,
रह गई अधुरी,बातो का क्या करुं।
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परेशां करती है धुधंली मुलाकते,
अब उन मुलाकातों का क्या करुं।
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जीता रहा फ़कत जिनके के लिऐ,
अब, टूटे उन नातो का क्या करुं।
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सोचता रहूं मै रात भर ख्यालो मे,
सुनो ऐसे ख्यालातो का क्या करे।
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क्यूं खेलते रहे जज्बात से वो मेरे,
मैं उन टूटे जज्बातों का क्या करुं।
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सुनहरे थे खुशी के लम्हात “जैदि”,
बिखरी हुई सौगातो का क्या करुं।
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शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”