ग़ज़ल :- क़द में तू बड़ा पर तेरा किरदार नही है…
क़द में तू बड़ा पर तेरा किरदार नही है।
ये आसमाँ तेरा कोई आधार नही है।।
इक शम्स चमकता है अकेला ही फ़लक में।
मत भूल उसी शम्स का इक यार नही है।।
मग़रूर न हो देख क़दरदान हजारों।
बादल से घिरा चाँद चमकदार नही है।।
है जिस्म मेरा दास भले आज तुम्हारा।
पर दिल पे मेरे आपका अधिकार नही है।।
विश्वास नही उसको ज़माने में किसी पर।
सारे जहां में शक तेरा उपचार नहीं है।।
उठ जाग खड़ा हो दिखा दे रंग जहां को।
ये ‘कल्प’ तू इतना भी तो लाचार नही है।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
221 1221 1221 122