ग़ज़ल कलीम यूसुफपुरी
मैं ऐसे हाल में ज़िंदा हूँ ये भी कम है क्या
बताओ मुझसे ज़ियादा तुम्हारा ग़म है क्या
हमारी आँख से अब भी लहू टपकता है
तुम्हारी आँख हमारी तरह ही नम है क्या
मेरी निगाह में तेरा मक़ाम आला है
तेरी नज़र में कोई और मुहतरन है क्या
तू बादशाह है तो क्या तेरा एहतराम करूँ?
ये तेरा घर है कोई दैर है, हरम है क्या
जहाँ मैं बैठ के दिन रात रोया करता था
ज़मीं वो इश्क़ की बतलाओ अब भी नम है क्या
तेरी हर एक अदा पर निसार था ये दिल
ख़बर न थी कि करम क्या है और सितम है क्या
तुझे क़सम है बता दे रह-ए-महब्बत में
तेरे ख़िलाफ़ मेरा कोई भी क़दम है क्या