ग़ज़ल/ऐ दिल
कर उल्फ़त ए नगर में बसर थोड़ा थोड़ा
ऐ दिल तू मचला कर बेशक़ मग़र थोड़ा थोड़ा
इक़ तरफ़ा इश्क़ में जानें मारे गए कितने
तड़पना छोड़ भी दे यारा हर पहर थोड़ा थोड़ा
तू जिसके लिए तड़पता है वो आया है क्या
अब ना कर प्यारे तू उस पर नज़र थोड़ा थोड़ा
तू लहज़ा लहज़ा धड़क कम्बख़्त शोर ना कर
तेरे हिस्से में भी सुकूँ होगा, सब्र कर थोड़ा थोड़ा
ये जो बह रहें हैं तेरी गली गली सब दरियां हैं
तेरे लिए तो आएगा इक़ दिन समंदर थोड़ा थोड़ा
~अजय “अग्यार