ग़ज़ल – एय – कश्मीर
रचनाकार- डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
ग़ज़ल – एय – कश्मीर
हवा बदली दशा दिशा बदली
आ आ हा आ हा कश्मीर की रंगत बदली
अब तो यहाँ मेरा भी घर होना चाहिए
दिलबरी गुस्ताख दिलबर को खबर होनी चाहिए //
औकात कुछ भी हो , पैसा पास हो न हो
सपनों के संग अब श्रृंगार का सामान होना चाहिए
अब तो यहाँ मेरा भी घर होना चाहिए
दिलबरी गुस्ताख दिलबर को खबर होनी चाहिए //
बँगला कोठी फार्महाउस कौन तुमसे मांगता
लक्ज़री सामान का न कोई आश्वासन चाहता
सिर्फ ओ सिर्फ ५०० मीटर का इक चारदीवारी में
एक हाल एक किचन एक टॉयलेट माँगता
अब तो यहाँ मेरा भी घर होना चाहिए
दिलबरी गुस्ताख दिलबर को खबर होनी चाहिए //
मौसम बदले यूँ तो यहाँ कोई ख़ास दिन होता नही
मुल्क पूरा पसीने में तर हो तो भी यहाँ बदन सुबकता नही
सर्दियां सुहानी बर्फ अनजानी चेह्कें सैलानी श्वेत चादर
डल लेक पर स्केटिंग मनमानी बस अधिक न चाहिए
अब तो यहाँ मेरा भी घर होना चाहिए
दिलबरी गुस्ताख दिलबर को खबर होनी चाहिए //
खून का एक कतरा न बहे इस शर्त के साथ इजलास होना चाहिए
सुखन – ए – महफिलों का आगाज होना चाहिए
अब तो यहाँ मेरा भी घर होना चाहिए
दिलबरी गुस्ताख दिलबर को खबर होनी चाहिए //