ग़ज़ल- उसे हाल दिल का सुनाने चला हूँ
ग़ज़ल- उसे हाल दिल का सुनाने चला हूँ
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उसे हाल दिल का सुनाने चला हूँ।
मैं फिर से नई चोट खाने चला हूँ।।
दुखा कर मेरा दिल ख़फ़ा जो हुआ है,
उसी हमसफ़र को मनाने चला हूँ।
है शीशा-ए-दिल का न कोई भरोसा,
गले संगदिल को लगाने चला हूँ।
है दिल ही कहाँ उसके सीने में यारों,
जिसे दाग़ दिल के दिखाने चला हूँ।
मुझे बद्दुआएं दीं जिसने हजारों,
उसे हर बला से बचाने चला हूँ।
जो रूठा है “आकाश” रूठा रहे वो,
मगर मैं क़सम तो निभाने चला हूँ।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 13/07/2019