ग़ज़ल- इस प्यार ने नगर में, कोहराम कर दिया
जिस प्यार ने नगर में, कोहराम कर दिया है।
उस प्यार ने ही मुझे को, नाक़ाम कर दिया है।।
इक़ नाम ने मुझे यूं , बेनाम कर दिया है।
यूँ नाम अपना दे कर, हमनाम कर दिया है।।
मुझको हिना सम़झ के, तुमने जो यूं रचाया ।
हाथों पे नाम लिख कर, बदनाम कर दिया है।।
कुमकुम बना के अपना, सौभाग्य जब बनाया।
बालों में अब छुपा के, गुमनाम कर दिया है।।
अनमोल था रतन में , गहना मुझे बनाया।
बाज़ार में पकड़ कर, नीलाम कर दिया है।।
छूकर मझे न देखा, था मोम सा मुलायम।
पत्थर का अब सनम कह, बेनाम कर दिया है।।
मशहूर था कभी मैं, इक़ ‘कल्प’ नाम से ही।
दिल में छुपा के मुझ को, गुमनाम कर दिया है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन