ग़ज़ल- आसमाँ को जमीं पे लायेंगे…
आसमाँ को जमीं पे लायेंगे।
एक दिन हम ये कर दिखायेंगे।।
रस्म-ए-उल्फ़त सदा निभायेंगे।
बीज नफ़रत का हम मिटायेंगे।।
जल रहे लोग जो भी नफरत से।
प्रेम का हम सबक सिखाएंगे।।
जाति मजहब नही रहे जिसमें।
एक दुनिया नई बनायेंगे।।
कर सकें हम यकींन दुश्मन पर।
बेवफा शब्द ही हटायेंगे।।
जो वतन पर दिखायेगा ऊँगली।
उसको ऊंगली पे हम नचायेंगे।।
हिंदु मुस्लिम इसाई सिख मिलकर।
कल्प हिंदोस्ताँ बनायेंगे ।।