ग़ज़ल- आप काटोगे वही जो कभी बोया होगा।
एक ताजातरीन ग़ज़ल आपकी नज़र??
बह्रे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
आप काटोगे वही जो कभी बोया होगा।।
आज मिलता भी वही जो कभी खोया होगा।।
छेड़ियेगा न कभी आप किसी पागल को।
वो नही जागता जो जान के सोया होगा।।
जान से कम नही वो जान मुझे कहता था।
करके मुझको तो विदा चेन से सोया होगा।।
कर रहा वो मेरी तारीफ़ भरी महफ़िल में।
उतर के मंच से नीचे मुझे धोया होगा।।
जो गया था मुझे श्मशान विदा करने को।
वो लिपट कर मेरी तस्वीर से रोया होगा।
‘कल्प’ महियत पे वो गमख़्वार नज़र आते हैं।
थूक से ही सही गालों को भिगोया होगा।।
✍?कल्प की कलम से