@ग़ज़ल:- आप इल्ज़ाम ही लगाते हो…
ग़ज़ल-
आप इल्ज़ाम ही लगाते हो।
प्यार हम पर ही क्यों लुटाते हो।।
कह न पाओ जुबां से दिल की लगी।
खीज़ हम पर निकाले जाते हैं।।
जानी दुश्मन समझ रहे हमको।
राज़दा दिल का भी बनाते हो।।
हमको अपना नही समझते फिर।
दिल पे हक़ आप क्यों जताते हो।।
इक तरफ दुश्मनी किये जाते।
हर क़दम दोस्ती निभाते हो।।
रात भर जागती ख़यालों में।
‘कल्प’ से क्यों नज़र चुराते हो।।
✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’