ग़ज़ल ‘अर्चना’ प्यारी है
03-11-2017
चुप रहना लाचारी है
ऐंठ मगर सरदारी है
ठोकर पग पग पर खाकर
सीखी दुनियादारी है
चूक निशाना हर जाता
कैसे कहें शिकारी है
काम अधूरे हैं सारे
आफिस ये सरकारी है
जीते हैं हम अपनों से
कैसी ये हुशियारी है
कलम बड़ी है ताकतवर
करती वार दुधारी है
स्वार्थ हुआ है अब आगे
पीछे जिम्मेदारी है
मिली खुशी है ये सुनकर
ग़ज़ल ‘अर्चना’ प्यारी है
डॉ अर्चना गुप्ता