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3 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल ‘अर्चना’ प्यारी है

03-11-2017

चुप रहना लाचारी है
ऐंठ मगर सरदारी है

ठोकर पग पग पर खाकर
सीखी दुनियादारी है

चूक निशाना हर जाता
कैसे कहें शिकारी है

काम अधूरे हैं सारे
आफिस ये सरकारी है

जीते हैं हम अपनों से
कैसी ये हुशियारी है

कलम बड़ी है ताकतवर
करती वार दुधारी है

स्वार्थ हुआ है अब आगे
पीछे जिम्मेदारी है

मिली खुशी है ये सुनकर
ग़ज़ल ‘अर्चना’ प्यारी है

डॉ अर्चना गुप्ता

3 Likes · 2 Comments · 453 Views
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