ग़ज़ल- अदब की ज़िंदगी मे क्या कमी है…
अदब की ज़िंदगी मे क्या कमी है।
अकड़ में टूट जाना लाज़मी है।।
नही छोटा बड़ा कोई ज़हाँ में।
मुकद्दर का खिलौना आदमी है।।
दिखाता ख़्वाब खुशियों के शहंशाह।
वतन जलता है माहुल मातमी है।।
जो छीने मुफ़लिसों के ही निवाले।
उसी ज़ालिम सियासत मे कमी है।।
सियासत ख़ुद रियासत लूटती हो
वहाँ चारों तरफ बस बरहमी है।।
मिली दौलत जमाने की उन्हें भी।
मग़र दामन में उनके कुछ कमी है।।
मुहब्बत की दिलों में ज्योति जलती
खुशी से ‘कल्प’ आँखों में नमी है।।
✍ ‘कल्प’
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