ग़ज़ल।हो गये अपने पराये लोग सब ।
ग़ज़ल । हो गये अपने पराये लोग सब ।
हो गये अपने पराये लोग सब ।
बेबसी मे है भुलाये लोग सब ।।
प्यार मे दिल को बिछाना था उन्हें ।
दर्द मे जबकि न आये लोग सब ।।
जीत मे खुशियों के बादल छा गये ।
हार मे नजरें चुराए लोग सब ।।
जख़्म मे मरहम लगाना था जिन्हें ।
बेरहम बन दिल दुखाये लोग सब ।।
वक्त की थी बन्दिशें मेरे लिये ।
वक्ते दर कहके न आये लोग सब ।।
अश्क़ के दरिया मे डूबा मै रहा ।
झूठ के आँसू बहाये लोग सब ।।
तोड़ के रश्में वफ़ा रकमिश, यहाँ ।
बेवज़ह वादे निभाये लोग सब ।।
राम केश मिश्र