ग़ज़ल।ये मुहब्बत तो नही।
ग़ज़ल।ये मुहब्बत तो नही ।
आपसे बेहतर कोई भी खूबसूरत तो नही ।
तुम वफ़ा ही करोगे ये हक़ीक़त तो नही ।।
जिंदगी के मोड़ पर मिल गये तो क्या हुआ ।
ये महज़ इत्तफ़ाक़ है कोई मुहूरत तो नही ।।
देखकर तेरी शरारत बढ़ गयी खामोशियां ।
लम्हा लम्हा गमसुदा हूँ ये मुहब्बत तो नही ।।
बेरुख़ी से टूटकर खुद तन्हा तन्हा जी रहा हूँ ।
बेवज़ह दिल तोड़ने की अब ज़रूरत तो नही ।।
हर किसी से दोस्ती ,प्यार दू मुमकिन कहाँ ।
कर वफ़ा बदनाम कर दू मेरी आदत तो नही ।।
बड़ रहीं है बेसक मुहब्बत में तेरी फरमाइशें ।
दिल के बदले यार मुझ पर ही हुकूमत तो नही ।।
है मुझे मंजूर ‘रकमिश’ गम भरी तनहाइयां ।
दर्द के झोंके सही कोई मिलावट तो नही ।।
©राम केश मिश्र’रकमिश’