ग़ज़ल।यही दौलत कमाया कर।
ग़ज़ल।यही दौलत कमाया कर ।
ग़ुरूर ऐ गर्व है नफ़रत ,कभी तो सर झुकाया कर ।
सभी इज्जत करे तेरी यही दौलत कमाया कर ।।
ये माना शाने शौक़त की तुम्हे परवाह है काफ़ी ।
मग़र रिस्तों की बेमानी रश्मे भी निभाया कर ।।
करेगा क्या जबाने भर की दौलत तू कमा करके ।
खुदा की बन्दगी में पल दो पल ही गवांया कर ।।
अदब से पेश तुम आओ बनो मरहम मरीजे गम ।
दिलों में प्यार की लौ से यहा रंजिश मिटाया कर ।।
मिलेगी मौत है मुमकिन गुनाहों से करो तौबा ।
खुदी की जिंदगी की भी कभी क़ीमत चुकाया कर ।।
भरे है लाख़ रंजोग़म यहा दुनियां में खुद हमदम ।
लगा कर आग़ नफ़रत की दिलों को मत जलाया कर ।।
मिलेंगी एक दिन तुमको यक़ीनन में खुसी ‘रकमिश’ ।
किसी की आँख में हसरत ,खुशियां तू बसाया कर ।।
राम केश मिश्र ‘रकमिश’