ग़ज़ल।मौत भी अपमान की।
ग़ज़ल।मौत भी अपमान की ।।
खिल्लियां उड़ने लगी है ऐ खुदा ईमान की ।
जीत अब होने लगी है बेवज़ह बेईमान की ।।
मुजरिमों के लिये है इज्जतें बेशक़ रिहाई ।
बेगुनाहों को सज़ा ये मौत भी अपमान की ।।
प्यार में नाक़ाम निकला ह्मवफ़ा नादान दिल ।
धौंस जमती बेवफ़ा डर इश्क़ में शैतान की ।।
ख़ुद सबूतों की तवज़्ज़ो दे रहे है लोग सब ।
फ़िक्र ऐ क़ीमत नही है वक़्ते दर एहसान की ।।
जान जोख़िम की बदौलत ही बनेंगे ह्मसफर ।
बदगुमानी में लगा कर झूठी बाजी जान की ।।
थम नही पाता यहाँ क्यों दोस्ती का सिलसिला ।
जब क़दर होती नही दिल आरजू सम्मान की ।।
साहिलों का ज़लज़ला देख तू ख़ामोश कैसे ।
दर्द के नग़मे है रकमिश गर्दिशे-तूफ़ान की ।।
©®® राम केश मिश्र