ग़ज़ल।बढ़ गया तब फ़ासला जब चाहने उनको लगा ।
=================ग़ज़ल================
बढ़ गया तब फ़ासला जब चाहने उनको लगा ।
कुछ मिला न फ़ायदा जब चाहने उनको लगा ।
थे नजरअंदाज तो वे ख़ुब शरारत कर रहे ।
ले रहे अब जायज़ा जब चाहने उनको लगा ।
कशमकश मे दिल लगा बैठा दिवाने सा कोई ।
हो गए वो ग़मज़दा जब चाहने उनको लगा ।
झूठ था या सच इशारा आँख का समझे नही ।
बन गए वो आईना जब चाहने उनको लगा ।
हो गए ख़ामोश मुझको दे गए तनहाइयाँ कुछ ।
ख़ल गया हर रास्ता जब चाहने उनको लगा ।
इश्क़ की शुरुआत मे ही दोस्ती खलने लगी ।
ढह गया हर मामला जब चाहने उनको लगा ।
बेअदब वो पेश आते जा रहे रकमिश ‘ सबक़ ।
दे रहा है ज़लज़ला जब चाहने उनको लगा ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी