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8 Feb 2017 · 1 min read

ग़ज़ल।बिंदास है कुहरा।

ग़ज़ल।विंदास है कुहरा।

आलम ठंडी का आसपास है कुहरा ।
अपनी इस जवानी में विंदास है कुहरा ।।

कुछ समय के लिये आ जाती निशाँ उतरकर ।
कभी हम पसन्द तो कभी विनास है कुहरा ।।

अलावे जलाकर बैठे लड़के जवान लोग ।
बूढ़े भी कहते अब अनायास है कुहरा ।।

इक किरण आकर रौशन करती ज़मी को ।
देख सूरज की तपिश ख़लास है कुहरा ।।

गर्मी जब बढ़ी कुहरे की परेसान है सूरज ।
देख लोगो की परेसानी उदास है कुहरा ।।

भला सूरज के सामने कहा तक लड़ता वह ।
हुआ बेबस, लाचार, हतास है कुहरा ।।

रात से है दुश्मनी सुबह तक आता नही ।
समय बदला हो गया निरास है कुहरा ।।

© राम केश मिश्र

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