ग़ज़ल।तब उसी तारीख़ से तेरा दिवाना जो गया ।
=============ग़ज़ल===================
ज़ब नज़र के ख़ंजरों का दिल निशाना हो गया ।
तब उसी तारीख़ से तेरा दिवाना हो गया ।
तू रुकी थी मुस्कुरायी खिलखिलाती हँस पड़ी ।
रात आयी शाम तक मौसम सुहाना हो गया ।
हौसलें बढ़ने लगे यूं ही तेरे दीदार को ।
आहटें आने लगी आहे चुराना जो गया ।
हो गया मालूम तुमको तो अदाओं की सज़ा ।
सह रहा पर वक्त पर वादा निभाना हो गया ।
इश्क की उस कशमकश मे बढ़ गयी बेताबियाँ ।
काम आयी जब दुआयें पास आना हो गया ।
शुक्रिया तेरा हमेशा वक़्त जो तुमने दिया ।
ज़िन्दगी मे आपका अब आना जाना जो गया ।
आईने आँखों मे ‘रकमिश ” क़ैद तस्वीरें हुई ।
बेख़बर हो ख़ुद व ख़ुद ही मुस्कुराना हो गया ।
✍ रकमिश सुल्तानपुरी