ग़ज़ल।घरौंदा प्यार का ऐसे ही खण्डर तो नही होता ।
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गिरेंगे सूख जाएंगे समंदर तो नही होता ।
ये आँसू भी यहाँ सबको मयस्कर तो नही होता ।
ग़मो की आँधियाँ गुज़री हुई होंगी तुम्हारे घर ।
घरौंदा प्यार का ऐसे ही खण्डर तो नही होता ।
किसी को ज़ख्म तन्हाई किसी को बेवफ़ाई तो ।
किसी की आँख मे आँसू यूँ अक्सर तो नही होता ।
मुहब्बत है मुहब्बत मे महज़ जज़्बात होते है ।
सभी को क़द्र ऐ दिल भी मुअन्सर तो नही होता ।
लगी है जान की बाज़ी सदा तख़्त ऐ मुहब्बत मे ।
कोई झूठी सियासत से सिकन्दर तो नही होता ।
ये दरिया है, सुनामी का न आये तो ही अच्छा है ।
अग़र आये सकूनत का हि मंज़र तो नही होता ।
बड़ी मुद्दत से मिलती है सदाये प्यार की ‘रकमिश ।
ख़ुमा ऐ इश्क़ का सबको उमरभर तो नही होता ।
रकमिश सुल्तानपुरी