ग़ज़ल।इश्क़ मे यूँ ठोकरें खाये बहुत ।
==================ग़ज़ल=====================
इश्क़ मे यूँ ठोकरें खाए बहुत ।
दिल लगाकर हम तो पछताए बहुत ।
जिश्म की हरसूं सजी बाज़ार मे ।
बिक गया ईमान घबराए बहुत ।
मंज़िलें तो दूर राहें न मिली ।
मिल रहे थे दर्द के साए बहुत ।
दर्द से ज़्यादा ग़मों की मार से ।
दिल्लगी मे जख़्म हम पाए बहुत ।
आह पर भी लग गयी पाबन्दियां ।
अश्क़ सारे आँख तक आए बहुत ।
लग गयी क़ीमत मेरे जज़्बात की ।
ग़ैरतों की मार हम खाए बहुत ।
खो गयी रकमिश यहां पहचान भी ।
देख दिल को लोग मुस्काए बहुत ।
रकमिश सुल्तानपुरी