ग़ज़ल/गीतिका
जो कुछ चाहिए सब बराबर रखा है
मधुर मंजु चीजें सजाकर रखा है |
तुम्हारी कसम है, हो तुम ही सहारा
विगत पल की यादें, बचाकर रखा है |
न है यह ज़माना हमारा तुम्हारा
न इज्जत मिला, दिल में पत्थर रखा है |
अपाहिज बराबर हुई है रहाई
अनंग की व्यथा को वहन कर रखा है |
पिला साकिया मुझको थोड़ी सी मदिरा
अधर सुखा, दिल में समंदर रखा है |
©कालीपद ‘प्रसाद’