ग़ज़ल/गीतिका
बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |
यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
सूख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले |
कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |
देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों के लिए
उन शहीदों को भी सारे देश का वन्दन मिले |
@ कालीपद ‘प्रसाद’