ग़रीबी
ग़रीबी ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
काफ़िया-ओड़
रफीफ-कर
देख कर हालात मेरे चल दिए वो छोड़कर
खास अपने थे चले वो आज रिस्ता तोड़कर।
पास जब दौलत हमारे थी सभी अपने हुए
पर ग़रीबी देखकर वो चल दिए मुँह मोड़कर।
बोझ सी लगने लगी अब जिंदगी अपनी मुझे
किस तरह से जी रहा मैं जिंदगी से होड़कर।
कल तलक मैं था मगन पर आज देखो ग़मज़दा
बीतता जाता सफर है जिंदगी का दौड़कर।
कर रहे हालात मुझको इस तरह ज़ख्मी मुझे
जी रहा मैं अब ग़रीबी का यहाँ पट ओढ़कर।
अभिनव मिश्र अदम्य