ग़म ऐ दौर में भी सदा मुस्कुराते रहो
ग़म ऐ दौर में भी सदा मुस्कुराते रहो
अँधेरा हो, जुगनुओ की तरह जगमागते रहो
कांटो में रह कर भी सदा
फूलों की तरह महकाते रहो
तूफानों में रहकर, कश्ती बन
मुसाफिरों को किनारे लगाते रहो
जहाँ मय्यसर ना हो चिराग़
गरीबों के आशियाने में रोशनी फैलाते रहो
दो वक्त की रोटी कहाँ नसीब याँ सबको
एक वक़्त की रोटी देकर नसीब बनाते रहो
मुक्कमल नही याँ ज़िन्दगी सुकूँ से बिताना
“भूपेंद्र” इस जहाँ में हंसो और सबको हंसाते रहो