ग़जल
ग़जल
माना तूफ़ानी मुश्किल का सफ़र है,
मंजिल है पास,बस धुंध का कहर है।
उठ चुके कदम जो, फिर रुकेंगे न कभी,
हर मुश्किल पर हौसले की जो नज़र है।
तूफ़ान मुड़ रहे हैं,चट्टानों से टकराकर,
ये पत्थर का नहीं,हिम्मत का असर है।
फिसलती रेत पर, चलते हैं पाँव उठाकर,
पूछेंगे नहीं,कि रास्ता जाता किधर है?
बदल हालात को,मंजिल पा हि जाएंगे,
उम्मीद भी हरी है,टिकी मंजिल पे नज़र है।
उजड़ने न पाए, सुहाना वतन ये,
इसमें मेरा ही नहीं,तेरा भी शहर है।