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5 Aug 2019 · 1 min read

ग़जल

ग़जल

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

आप हमसे यूँ अदावत अब न करना।
रूठना लेकिन बगावत अब न करना।

दोस्त मिलते हैं बड़े ही मुश्किलों से,
दोस्त बनकर तुम सियासत अब न करना।

वो न जिंदा रात भर भी रह सकेगा,
चंद साँसों की तिज़ारत अब न करना।

हार मिल जाये हमें गम हैं न कोई,
यार झूठों का वक़ालत अब न करना।

हम न रह पायें कभी भी रात तन्हा,
छोड़ जाने की हिमाक़त अब न करना।

याद आयी रात भर जिसकी वजह से,
दर्द के ख़त की हिफाज़त अब न करना।

आग मुझमें भी बराबर सी लगी है,
यूँ बढ़ाने की शरारत अब न करना।

जो बयां कर ना सके हम दर्द अपना,
इस कदर सुनने कि आदत अब न करना।

अदावत- शत्रुता; तिज़ारत- व्यापार; हिमाक़त- बेवकूफ़ी, मूर्खता; हिफाज़त- देखभाल, रक्षा।

Rishikant Rao Shikhare
Ambedkar Nagar, Uttar Pradesh.

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