ख़्वाब जो पैदा हुआ
ख़्वाब जो पैदा हुआ है मन में ,उसकी परवरिश कर रहा हूँ।
वो काबिल हो ,भगवान से ये सिफारिश कर रहा हूँ।
जो उम्मीदें सूख चुकीं है हर तरह से,
रह – रह कर उनपर, धीरज की बारिस कर रहा हूँ।
ख़्वाब जो पैदा हुआ है मन में ,उसकी परवरिश कर रहा हूँ।
वो काबिल हो ,भगवान से ये सिफारिश कर रहा हूँ।
ख़्वाब कहीं ख़्वाब ही रह न जाए।
उम्मीदें टूट कर कहीं बह न जाएं।
जिन्दगी भटक रही है दर बदर,
लिए साथ अनगिनत अपने पराए।
अब तो किस्मत को ही ,अपना वारिस
कर रहा हूँ।
ख़्वाब जो पैदा हुआ है मन में ,उसकी परवरिश कर रहा हूँ।
वो काबिल हो ,भगवान से ये सिफारिश कर रहा हूँ।
आदमी से सिफारिश करूँ तो रिश्वत दूँ।
फिर भी पूरा न हो तो किसे तोहमत दूँ।
ख़्वाब !तूँ अपने बल बूते पूरा हुआ तो ठीक,
वरना अपने दिलो दिमाग से तुझे रुखसत दूँ।
थक हारकर अब ख़्वाब को लावारिश कर रहा हूँ।
ख़्वाब जो पैदा हुआ मन में ,उसकी परवरिश कर रहा हूँ।
वो काबिल हो ,भगवान से ये सिफारिश कर रहा हूँ।
-सिद्धार्थ