ख़्वाबो की कहानी ।
मेरे ख़्वाबो की तुम एक कहानी बन गयी ,
तकिये, चादर सब के सब पानी बन गयी ।
अब रात को नींद आती कहा मुझे ,
क्या पता कौन सी निशानी बन गयी ।
वो रात भी मुझे याद है , जब आती थी चाँद मेरे खिड़की पे ,
अब तो चाँद भी थोड़ी सी पुरानी बन गयी ।
जिंदगी इस कदर गुजर रही है अब तो,
पता ही नही चला कौन कब किसकी नानी बन गयी ।
रातो में सोते हुए मुझे एक ख्वाब भी आया ,
अब तो ये दिवार भी एक परेशानी बन गयी ।
तुम्हारी यादें दस्तक देती है मेरी नींदों में भी ,
अब तो ये आदत भी जानी पहचानी बन गयी ।
कभी हम तुम्हारे और तुम हमारे हुआ करते थे ,
अब तो ये पहचान भी बेगानी बन गयी ।
✍?हसीब अनवर