ख़ौफ के सन्नाटे
लगता है चारों ओर खौफ़ के सन्नाटे छाए हुए हैं ।
इंसान वहशी दरिंदे बने म़ौत के साए हैं ।
चारों ओर आग ही आग फैली हुई हर शै को जज़्ब किये हुए ।
इंसानिय़त को शर्म़सार करती हुई ज़ुल्म और तश़्द्दुत की हदों को पार करते हुए।
खुदगर्ज़ और कम़जर्फ़ लोगों के हुज़ूम की श़क्ल में मज़लूमों पर क़हर ब़रपाते हुए।
सिय़ासती ब़िसात पर फ़िरकाप़रस्ती की चालों को चलते हुए ।
दोस्त को दोस्त से अलग करते हुए और दुश्मन को दोस्त बनाते हुए।
वतनप़रस्ती मुख़ौटों को लगाए ग़द्दारों की फौज लिए हुए ।
चंद टुकड़ों की खातिर अपना ज़मीरो ईम़ान बेचते हुए ।
वतन को टुकड़ों टुकड़ों में बांटने की साज़िश रचते हुए ।
कौन है वो ? जो आस्त़ीन का सांप बने
नेकनीयत और इंसानियत के वजूद को खत्म कर देने की ख्वा़हिश में अपने मंसूबों को सर अंजाम दे रहे हैं ।
उन सब अऩासिर को तुझे ढूंढ निकाल नेस्त़नाब़ूद कर देना होगा ।
तभी तू अपनी सलाम़ती और ज़ाती आज़ादी की हिफाज़त करने में कामय़ाब होगा ।