ख़ुश हूँ
ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
ज़िन्दगी से ख़ुश हूँ,
ईश्वर ने जो दिया, उससे ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
अपने मुक़ाम से ख़ुश हूँ,
अपने मकान से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
अपने मन से ख़ुश हूँ,
अपनी मनमानी से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
अपने वतन से ख़ुश हूँ,
इस अपनेपन से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
जो मिला है, उससे ख़ुश हूँ,
जो मिलेगा, उससे भी ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
अपने कार्यों से ख़ुश हूँ,
जीवन के भारों से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
ज्ञान की माया से ख़ुश हूँ,
भक्ति की छाया से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
अपनी नजारों से ख़ुश हूँ,
जीवन के बहारों से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
पढ़ने से ख़ुश हूँ,
पढ़ाने से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
रात के अंधेरे से ख़ुश हूँ,
दिन के उजाले से ख़ुश हूँ,
अपने हवाले से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
संस्कारों से ख़ुश हूँ,
व्यवहारों से ख़ुश हूँ,
जीवन के उपहारों से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
ग़म से ख़ुश हूँ,
मुस्कान से ख़ुश हूँ,
थोड़ी मिली पहचान से ख़ुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
जीवन के ना में ख़ुश हूँ,
अपनी हाँ में ख़ुश हूँ,
इंतज़ार नहीं है कल का,
मैं आज ही में ख़ुश हूँ।
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
ज़िन्दगी छोटी है,
हर एक पल में ख़ुश हूँ,
मिल रहे सम्मान से ख़ुश हूँ,
कल के अपमान से भी खुश हूँ,
हाँ, मैं ख़ुश हूँ।
हर छोटी – बड़ी बातों से ख़ुश हूँ,
सबकी मुलाकातों से ख़ुश हूँ,
बस इतनी दुआ है रब से
मैं ख़ुश थी
ख़ुश हूँ
और ख़ुश ही रहूँ।
——–सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)