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4 Nov 2021 · 1 min read

ख़ुशी के लिए…

जब भी मैं, तेरा चेहरा भूलाता हूँ
हर बार, खुद ही को भूल जाता हूँ…

मयस्सर नहीं, रोशनी का कतरा भी
मैं जल-जलकर, रातभर मर जाता हूँ…

रोज़ एक ही ख्वाब देखा है, ज़माने से
तू दुल्हन मेरी, मैं दूल्हा तेरा बन जाता हूँ…

हकीकतें मगर सीने में, शूल सी चुभती हैं
ख़ुशी के लिए, गमों के साथ जिया जाता हूँ…

दोनों के दरमियाँ, एक गली का फ़ासला
साथ चलकर, जानें किस ओर मुड़ जाता हूँ…

दुनिया को, तेरे बदले ठुकरा रहा हूँ
पाकर सबकुछ खाली हाथ रह जाता हूँ…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

2 Likes · 2 Comments · 320 Views
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