ख़ुदा भी ख़फा
**खुदा भी खफ़ा (ग़ज़ल)**
*** 2122 2122 12 ****
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जिंदगी के दिन बदल हैं गए,
ढंग जन जीवन बदल हैं गए।
लोग दिखते ही नहीं हैं कहीं,
माइने वो दर्पण बदल हैं गए।
चाव से मिलते नहीं साजना,
भाव जो अर्पण बदल हैं गए।
अब सनम भी है जुदा बेवफा,
हाल अपनापन बदल हैं गए।
यार मनसीरत खुदा भी ख़फ़ा,
राम – रहिमन भी बदल गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)