“ख़ुदाया राह दिखा”
दिली आरज़ू फ़कत सब लुभाने की
मेरी तलाश में हैं गर्दिशें ज़माने की
ये धरती चाँद सितारें गवाह हैं सभी
अब इल्तिज़ा नहीं जन्नत में जाने की
टूटे फूल की ,हवा भी हँसी उड़ाती है
तो क्या ज़ुर्रत करूँ चमन को पाने की
खुदाया क्या ख़ुदायगी भूल गया है तू
ज़िद्द छोड़ भी दे अब मुझें भटकाने की
मैं वाकिफ़ हूँ गुमाँ के बदले अज़ाब से
ख़ुदाया राह दिखा सादगी में आने की
नादां हूँ मैं, मेरे गुनाह सब मुआफ़ कर
हुई भूल ग़र,नज़र कर होश में लाने की
__अजय “अग्यार