ख़ास एवं अनमोल विचार
बहले जो समझे नहीं,सीरत नारी ख़ास।
सीखी जिसने बात ये,वो नर नहीं उदास।।
शस्त्र चलाएँ शत्रु पर,दिल में बसते मीत।
दिल की बाजी हार के,गाएँ दोस्ती गीत।।
मन की पीड़ा जब बही,बनके कविता तान।
ये हल्का-सा हो गया,पतंग सरिस उड़ान।।
सबको अपना मानिए,ख़ुशियाँ आठों याम।
पूजा जाए कर्म ही,चमड़ी का ना दाम।।
जीना जीवन चार-दिन,हँसते रहिए आप।
मन उजियारा राखिए,तम भी करे विलाप।।
दु:ख में देना साथ ही,धर्म मीत का एक।
भागे आँखें जो चुरा,मीत नहीं वो नेक।।
व्यथा कथा दिल की कहो,हल्का हो मन भार।
अंदर कैंसर-सा बने,पीड़ा करे अपार।।
सच्ची बातें आप की,कहदो मन को खोल।
जीवन सुधरे और का,बढ़े बात का मोल।।
चुगली होती आग-सी,मत करना तुम भूल।
घर फूँके ये और का,घटे स्वयं का मूल।।
दया धर्म तुम छोड़ के,पत्थर बनते एक।
मानव हो मानव रहो,सीखें भाव अनेक।।
–आर.एस.प्रीतम
सर्वाधिकार सुरक्षित–radheys581@gmail.com